FERA Full Form in Hindi




FERA Full Form in Hindi - FERA की पूरी जानकारी?

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FERA Full form in Hindi

FERA की फुल फॉर्म “Foreign Exchange Regulation Act” होती है. FERA को हिंदी में “विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम” कहते है. विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम 1973 में भारतीय संसद द्वारा इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा पारित कानून था और 1 जनवरी, 1974 से प्रभावी हुआ. FERA ने कुछ प्रकार के भुगतानों पर कड़े नियम लागू किए, विदेशी मुद्रा में लेनदेन और प्रतिभूतियां और लेनदेन जो विदेशी मुद्रा और मुद्रा के आयात और निर्यात पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते थे. FERA को अब विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) द्वारा बदल दिया गया है.

FERA का फुल फॉर्म है “Foreign Exchange Regulation Act” जिसका हिंदी मतलब होता है “विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम”. विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) 1973 में भारत में पारित एक कानून था जिसका मुख्य काम कुछ प्रकार के भुगतानों, विदेशी मुद्रा और प्रतिभूतियों में लेनदेन और विदेशी मुद्रा पर अप्रत्यक्ष प्रभाव वाले लेनदेन पर सख्त नियम लागू करना था. इसको (FERA Full Form) विदेशी मुद्रा के आयात और निर्यात, बिल भुगतान और विदेशी मुद्रा को विनियमित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था.

What Is FERA In Hindi

जब कोई व्‍यापारी उद्यम अन्‍य देशों से वस्‍तुओं का आयात करता है, उन्‍हें अपने उत्‍पाद निर्यात करता है अथवा विदेशों में निवेश करता है तो वह विदेशी मुद्रा का लेन देन करता है. विदेशी एक्‍सचेंज का अर्थ है विदेशी मुद्रा तथा इसमें निम्‍न शामिल हैं :- (i) किसी विदेशी मुद्रा में संदेय जमा राशियां; (ii) ड्राफ्ट (हुंडिया), यात्री चैक, ऋणपत्र या विनिमय हुंडियां जो भारतीय मुद्रा में व्‍यक्‍त या आ‍हरित हो किन्‍तु किसी विदेशी मुद्रा में संदेय हो; तथा (iii) ड्राफ्ट, यात्री चैक, ऋण पत्र या विनिमय हुंडियां जो भारत से बाहर बैंकों, संस्‍थाओं या व्‍यक्तियों द्वारा आहरित हो किन्‍तु भारतीय मुद्रा में संदेय हों. भारत में सभी लेन देन, जिनमें विदेशी मुद्रा शामिल हैं, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेमा), 1973 द्वारा विनियमित किए जाते थे. फेरा का मुख्‍य उद्देश्‍य देश के विदेशी मुद्रा संसाधनों का संरक्षण तथा उचित उपयोग करना था. इसका उद्देश्‍य भारतीय कंपनियों द्वारा देश के बाहर तथा भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा व्‍यापार के संचालन के कुछ पहलुओं को नियंत्रित करना भी है. यह एक आपराधिक विधान था, जिसका अर्थ था कि इसके उल्‍लंघन के परिणामस्‍वरूप कारावास तथा भारी अर्थ दंड के भुगतान की सजा दी जाएगी. इसके अनेक प्रतिबंधात्‍मक खंड थे जो विदेशी निवेशों पर रोक लगाते थे. आर्थिक सुधारों तथा उदारीकृत, परिदृश्‍य के प्रकाश में फेरा को एक नए अधिनियम द्वारा प्रतिस्‍थापित किया गया जिसका नाम है विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने फेरा को निरस्त करके सन् 1999 मे फेरा का नाम बदल कर फेमा रखा गया.

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा), भारत की संसद का एक अधिनियम है "विदेशी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाने और विदेशी मुद्रा के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने के लिए". भारत में बाजार". इसे 29 दिसंबर 1999 को विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) की जगह संसद में पारित किया गया था. यह अधिनियम विदेशी मुद्रा नागरिक अपराधों से संबंधित अपराधों को बनाता है. यह पूरे भारत में फैला हुआ है, फेरा की जगह ले रहा है, जो भारत सरकार की उदारीकरण समर्थक नीतियों के साथ असंगत हो गया था. इसने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के उभरते ढांचे के अनुरूप एक नई विदेशी मुद्रा प्रबंधन व्यवस्था को सक्षम किया. इसने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की शुरूआत का मार्ग भी प्रशस्त किया, जो 1 जुलाई 2005 से प्रभावी हुआ.

विदेशी मुद्रा, प्राचीन काल से, बड़े पैमाने पर बैंकों और निगमों के लिए अनन्य डोमेन के रूप में मान्यता दी गई है. इसके साथ ही यह दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा बाजार भी है. इस बाजार के बढ़ते महत्व को ध्यान में रखते हुए जहां मुद्रा परिवर्तन एक और सभी के भाग्य को निर्धारित कर सकते हैं, विदेशी मुद्रा को विनियमन के दायरे में लाने के लिए इसे सर्वोपरि माना गया. FERA - फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट के लिए चार अक्षरों का संक्षिप्त नाम एक कानून है जो 1973 में विदेशी मुद्रा में कुछ सौदों को विनियमित करने, कुछ प्रकार के भुगतानों पर प्रतिबंध लगाने और विदेशी मुद्रा को प्रभावित करने वाले लेनदेन की निगरानी करने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया था. मुद्रा का आयात और निर्यात.

जबकि FERA भारत के विदेशी भंडार के प्रबंधन और संरक्षण के इरादे से वर्ष 1973 में पेश किया गया संसद का एक अधिनियम है, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) पहले से मौजूद कानून का विस्तार है. फेमा के अधिनियमन के पीछे का उद्देश्य न केवल विदेशी मुद्रा को विनियमित और सुविधाजनक बनाना था बल्कि भारत में विदेशी मुद्रा भंडार के आकार को बढ़ाने के साथ-साथ विदेशी व्यापार और भुगतान को बढ़ावा देना भी था. वर्ष 1999 में प्रख्यापित, फेमा ने पूर्ववर्ती कानून के विपरीत, विदेशी मुद्रा नियंत्रण और विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों को काफी हद तक उदार बनाया. इतना ही नहीं, बल्कि बाद वाले ने देश में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास और उचित प्रबंधन पर भी जोर दिया. फेरा के विपरीत, फेमा का उल्लंघन एक कंपाउंडेबल अपराध है, जिसके आरोपों को हटाया जा सकता है. इसके अलावा, फेरा और फेमा के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए अलग-अलग प्रतिशोध हैं.

भारत में संपत्ति के अधिग्रहण से संबंधित फेरा और फेमा के बीच एक बड़ा अंतर है. फेरा के तहत, संपत्ति की खरीद के लिए "नागरिकता" मानदंड था; फेमा के तहत यह "निवास" है जो मानदंड है. इसका तात्पर्य यह है कि, फेरा प्रावधानों के तहत, एक व्यक्ति जो एक भारतीय नागरिक है, भारत में संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है और एक विदेशी नागरिक भारत में संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकता है (एनआरआई की अनुमति के अलावा). हालांकि, फेमा के तहत, एक भारतीय निवासी भारत में संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है जो अन्यथा अनिवासियों को अनुमति नहीं है. संक्षेप में, FEMA पूर्ववर्ती FERA के स्थान पर या सुधार के रूप में उभरा है. इसके अलावा, एक विदेशी कंपनी जिसका शाखा कार्यालय या भारत में व्यापार का कोई अन्य स्थान है, FERA / FEMA नियमों के अनुसार, भारत में अचल संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है जो ऐसी गतिविधि को करने के लिए आकस्मिक या सहायक है. निष्कर्ष निकालने के लिए, विदेशी मुद्रा से जुड़ी हर चीज और हर चीज को विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के तहत विनियमित किया गया था. और यद्यपि, इसे सर्वोत्तम इरादों के साथ अधिनियमित किया गया था, इसने अपने अत्यधिक कड़े प्रतिबंधों के कारण भारतीय उद्योगों के विकास में बाधा उत्पन्न की. हालांकि, फेमा की शुरुआत के साथ, भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के विकास और व्यवस्थित प्रबंधन की सुविधा के साथ-साथ परिदृश्य जल्द ही नियंत्रण से प्रबंधन में बदल गया.

FERA का मुख्य काम

FERA (फेरा) कानून (FERA Full Form) का मुख्य कार्य विदेशी भुगतान पर नियंत्रण लगाना, पूँजी बाजार में काले धन पर नजर रखना, विदेशी मुद्रा के आयात और निर्यात पर नजर रखना और विदेशियों द्वारा अचल संपत्तियों की खरीद को नियंत्रित करना था. इस कानून को देश में तब लागू किया गया था जब देश का विदेशी पूँजी भंडार बहुत ही ख़राब हालत में था. इसका उद्देश्य विदेशी मुद्रा के संरक्षण और अर्थव्यवस्था के विकास में उसका सही उपयोग करना था.

FEMA (फेमा) क्या है जिसने FERA(फेरा) का स्थान लिया है?

आर्थिक उदारीकरण के समय विदेशी विनिमय के कुशल प्रबन्ध की आवश्यकता महसूस की गई. इसके फलस्वरूप विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (फेरा) की समीक्षा की गई और आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए विश्व अर्थव्यवस्था में मजबूती के लिए विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (फेरा) में विदेशी विनिमय एवं विदेशी व्यापार से सम्बन्धित अनेक संशोधनों को कानूनी रुप दिया गया. प्रारम्भ में भारत सरकार ने (FERA) Foreign Exchange Regulation Act (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) के पुनर्विचार का मन बनाया, परन्तु बाद में सरकार ने ‘फेरा’ (FERA Full Form) को रद्द करके नया कानून बनाना अधिक अच्छा समझा. इसके पश्चात केन्द्रीय सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (RBI) से इस दिशा में एक नया अधिनियम लाने का अनुरोध किया. इस उद्देश्य के लिये एक कार्य-बल (Task Force) का गठन किया गया जिसने 1994 में तत्कालीन अधिनियम (फेरा) में पर्याप्त परिवर्तन की संस्तुति की. परिणामस्वरुप फेरा (FERA) को रद्द करने तथा उसका स्थान ग्रहण करने के लिये लोकसभा में 4 अगस्त, 1998 को एक विधेयक प्रस्तुत किया गया. जिसे “Foreign Exchange Management Act” (FEMA) या “विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम”के नाम से जानते हैं.

FEMA का महत्वपूर्ण काम

फेमा का महत्वपूर्ण लक्ष्य विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों का संशोधन और एकीकरण करना है. इसके अलावा फेमा का लक्ष्य देश में विदेशी भुगतान और व्यापार को बढ़ावा देना, विदेशी पूँजी और निवेश को देश में बढ़ावा देना है ताकि औद्योगिक विकास और निर्यात को बढ़ाया जा सके. फेमा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव और सुधार को भी प्रोत्साहित करता है. फेमा भारत में रहने वाले हर एक व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह भारत के बाहर संपत्ति को खरीद सकता है, मालिक बन सकता है और उसका मालिकाना हक़ भी किसी और को भी दे सकता है.

फेरा और फेमा में क्या अंतर होता है?

सन 1973 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम(FERA)पारित किया गया, जिसका मुख्य उद्येश्य विदेशी मुद्रा का सदुपयोग सुनिश्चित करना था. लेकिन यह कानून देश के विकास में बाधक बन गया था इस कारण दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा प्रस्तावित किया गया था. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद 1999 में फेमा प्रभाव में आ गया. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में विदशी मुद्रा बहुत ही सीमित मात्रा में होती थी; इस कारण सरकार देश में इसके आवागमन पर नजर रखती थी. सन 1973 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम (FERA) पारित किया गया, जिसका मुख्य उद्येश्य विदेशी मुद्रा का सदुपयोग सुनिश्चित करना था. लेकिन यह कानून देश के विकास में बाधक बन गया था इस कारण सन 1997-98 के बजट में सरकार ने फेरा-1973 के स्थान पर फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) को लाने का प्रस्ताव रखा था. दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा पास किया गया था. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद जून 1, 2000 को फेमा प्रभाव में आ गया था.

फेरा क्या है?

फेरा कानून का मुख्य कार्य विदेशी भुगतान पर नियंत्रण लगाना, पूँजी बाजार में काले धन पर नजर रखना, विदेशी मुद्रा के आयात और निर्यात पर नजर रखना और विदेशियों द्वारा अचल संपत्तियों की खरीद को नियंत्रित करना था. इस कानून को देश में तब लागू किया गया था जब देश का विदेशी पूँजी भंडार बहुत ही ख़राब हालत में था. इसका उद्देश्य विदेशी मुद्रा के संरक्षण और अर्थव्यवस्था के विकास में उसका सही उपयोग करना था.

फेमा क्या है?

फेमा का महत्वपूर्ण लक्ष्य विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों का संशोधन और एकीकरण करना है. इसके अलावा फेमा का लक्ष्य देश में विदेशी भुगतान और व्यापार को बढ़ावा देना, विदेशी पूँजी और निवेश को देश में बढ़ावा देना ताकि औद्योगिक विकास और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके. फेमा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव और सुधार को प्रोत्साहित करता है. फेमा भारत में रहने वाले एक व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह भारत के बाहर संपत्ति को खरीद सकता है मालिक बन सकता है और उसका मालिकाना हक़ भी किसी और को दे सकता है. आइये जानते हैं कि फेरा और फेमा में क्या अंतर है.

फेमा और फेरा कानून क्या है ?

फेमा का मुख्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों का संशोधन व एकीकरण करना है फेमा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव व सुधार को प्रोत्साहित करता है फेमा का मुख्य उद्देश्य यह भी है यह कानून भारत से बाहर रहने वाले भारतीय नागरिक पर लागू नहीं होता है फेमा कानून यह कहता है की यदि को कोई व्यक्ति अपने साथ अधिकतम 5 हजार डॉलर और इतनी ही कीमत का सामान ले जा सकता है अगर इससे अधिक विदेशी मुद्रा या सामान ले जाता है तो उसे पहले इसकी जानकारी कस्टम अधिकारी को देनी होगी. फेमा कानून (FEMA Act) को FERA Act की जगह पर लाया गया है फेरा एक विवादपूर्ण कानून था जिसे 1973 में सांसद की मंजूरी मिली थी और 1974 में अस्तित्व में आया था यह एक अपराधिक श्रेणी का कानून था भारत में जो भी इस नियम का उल्लंघन करता पाया जाता उसे उसपर कड़ी कार्यवाही होती थी.

फेमा कानून से बड़े बड़े उद्योगपति नाखुस थे उन्हें लगता था क वह प्रवर्तन निदेशालय की मर्जी के शिकार हो रहे है इस कानून से धीरे धीरे विदेशी मुद्रा भंडार और आयत निर्यात में कमी आने लगी जिसके पश्चात् सन 1999 के शीलकालीन सत्र में फेरा की जगह फेमा कानून लाने की सहमती हुई उसके कुछ महीने पश्चात् 1 जून 2000 को फेरा को निरस्त कर फेमा अस्तित्व में आ गया. फेरा में जहा पहले मामला आपराधिक श्रेणी में आता था और सजा का प्रावधान था वही FEMA एक सिविलियन कानून है जिसमे अपराधी का अपराध के तहत मामला दर्ज किया जाता है और इसमें सिर्फ जुर्माने का प्रावधान है फेरा कानून इसलिए भी विवादित माना जाता है क्योकि इसके अंतर्गत मुकदमा दर्ज होते ही आरोपी दोषी माना जाता है और उस आरोपी को यह साबित करना होता था की वो दोषी नहीं है. जबकि अन्य मामलों में दोष साबित ना होने तक आरोपी को निर्दोष माना जाता है. फेरा कानून के जगह पर फेमा कानून लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य ये था की देश के विदेशी विनिमय बाजार और व्यापार को अधिक से अधिक सरल बनाया जा सकें.

द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद से भारत में विदेशी मुद्रा की कमी के कारण इसका नियंत्रण हो गया. भारत में 3 सितंबर 1939 को भारत रक्षा नियमों के तहत अस्थायी आधार पर विनिमय नियंत्रण पेश किया गया था. विनिमय नियंत्रण के लिए वैधानिक शक्ति 1947 के विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) द्वारा प्रदान की गई थी. विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 शुरू में अस्थायी आधार पर दस वर्षों की अवधि के लिए अधिनियमित किया गया था. हालाँकि, 10 वर्षों के आर्थिक विकास ने विदेशी मुद्रा की बाधा को कम नहीं किया, FERA ने स्थायी रूप से वर्ष 1957 में स्टैच्यू बुक में प्रवेश किया. इसके बाद, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 को विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 (FERA, 1973) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था. जो 1 जनवरी, 1974 से लागू हुआ. FERA, 1973 कुछ भुगतानों, विदेशी मुद्रा और प्रतिभूतियों में लेनदेन, विदेशी मुद्रा को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले लेनदेन और विदेशी मुद्रा के संरक्षण के लिए मुद्रा के आयात और निर्यात को विनियमित करने के लिए लागू हुआ. देश के संसाधनों का आदान-प्रदान और देश के आर्थिक विकास के हित में उनका उचित उपयोग. 1997-98 के बजट में, सरकार ने FERA-1973 को FEMA (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) द्वारा प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव दिया था. FEMA को दिसंबर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा प्रस्तावित किया गया था. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद, FEMA 1999 प्रभावी हो गया है. जून, 2000. फेमा के तहत, विदेशी मुद्रा से संबंधित प्रावधानों को संशोधित और उदार बनाया गया है ताकि विदेशी व्यापार को सरल बनाया जा सके. सरकार को उम्मीद है कि फेमा विदेशी मुद्रा बाजार में अनुकूल विकास करेगा.

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा), 1973

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) 1973 में प्रख्यापित किया गया था और यह 1 जनवरी 1974 को लागू हुआ. इस अधिनियम की धारा 29 सीधे भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के संचालन के लिए संदर्भित है. धारा के अनुसार, सभी गैर-बैंकिंग विदेशी शाखाओं और अनुषंगियों को जिनकी विदेशी इक्विटी 40 प्रतिशत से अधिक है, उन्हें नए उपक्रम स्थापित करने, मौजूदा कंपनियों में शेयर खरीदने, या पूर्ण या आंशिक रूप से किसी अन्य कंपनी का अधिग्रहण करने की अनुमति लेनी होगी. देश के विदेशी मुद्रा संसाधनों के संरक्षण और देश में उसके उचित उपयोग के लिए कुछ भुगतानों, विदेशी मुद्रा और प्रतिभूतियों में लेनदेन, अप्रत्यक्ष रूप से विदेशी मुद्रा को प्रभावित करने वाले लेनदेन और मुद्रा के आयात और निर्यात को विनियमित करने वाले कानून को समेकित और संशोधित करने के लिए एक अधिनियम देश के आर्थिक विकास के हित.

फेरा की विशेषताएं

(1) इस अधिनियम को विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 कहा जा सकता है.

(2) यह पूरे भारत में फैला हुआ है.

(3) यह भारत के बाहर भारत के सभी नागरिकों और भारत में पंजीकृत या निगमित कंपनियों या निकायों की शाखाओं और एजेंसियों पर भी लागू होता है.

(4) यह उस तारीख को लागू होगा, जो केंद्र सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस संबंध में नियत करे:

बशर्ते कि इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के लिए अलग-अलग तिथियां नियत की जा सकती हैं और इस अधिनियम के प्रारंभ के लिए ऐसे किसी प्रावधान में किसी भी संदर्भ को उस प्रावधान के लागू होने के संदर्भ के रूप में माना जाएगा. इन दिशानिर्देशों के अनुसार, मूल नियम यह था कि भारत में कार्यरत विदेशी कंपनियों की सभी शाखाओं को कम से कम 60 प्रतिशत स्थानीय इक्विटी भागीदारी के साथ भारतीय कंपनियों में परिवर्तित होना चाहिए. इसके अलावा विदेशी की सभी सहायक कंपनियों को विदेशी इक्विटी शेयर को 40% या उससे कम पर लाना चाहिए. इस अधिनियम का वास्तविक प्रभाव देश के आर्थिक विकास पर पूरी तरह से नकारात्मक था, क्योंकि इसने अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए बड़े कॉरपोरेट घरानों के हाथ बंधे थे, इसलिए नीति निर्माताओं द्वारा यह महसूस किया गया कि अधिनियम में कुछ छूट दी जानी चाहिए ताकि औद्योगीकरण के माध्यम से देश में आर्थिक विकास को गति दी जा सकती है.

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999

विदेशी मुद्रा प्रबंधन विधेयक (फेमा) भारत सरकार द्वारा 4 अगस्त 1998 को संसद में पेश किया गया था. इस विधेयक का उद्देश्य "विदेशी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करना है. भारत में विदेशी मुद्रा बाजार का व्यवस्थित विकास और रखरखाव. विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के विभिन्न उद्देश्यों में से एक महत्वपूर्ण है विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों को संशोधित और एकजुट करना. इसके अलावा फेमा देश में विदेशी भुगतान और व्यापार को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है. विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव और सुधार को प्रोत्साहित करना है.

फेमा की विशेषताएं

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

ए. यह पूर्ण चालू खाता परिवर्तनीयता के अनुरूप है और इसमें पूंजी खाता लेनदेन के प्रगतिशील उदारीकरण के प्रावधान शामिल हैं.

बी. यह अपने आवेदन में अधिक पारदर्शी है क्योंकि यह विदेशी मुद्रा के अधिग्रहण/धारण पर रिजर्व बैंक/भारत सरकार की विशिष्ट अनुमति की आवश्यकता वाले क्षेत्रों को निर्धारित करता है.

सी. इसने विदेशी मुद्रा लेनदेन को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया, अर्थात. पूंजी खाता और चालू खाता लेनदेन.

डी. यह रिजर्व बैंक को केंद्र सरकार के साथ परामर्श करने के लिए, पूंजी खाता लेनदेन के वर्गों और इस तरह के लेनदेन के लिए स्वीकार्य विनिमय की सीमा को निर्दिष्ट करने के लिए शक्ति प्रदान करता है.

इ. यह भारत में रहने वाले व्यक्ति को, जो पहले भारत के बाहर निवासी था, भारत के बाहर स्थित किसी भी विदेशी सुरक्षा/अचल संपत्ति को रखने/स्वामित्व/हस्तांतरण करने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है और जब वह निवासी था तब अर्जित किया गया था.

एफ. यह अधिनियम एक नागरिक कानून है और अधिनियम का उल्लंघन केवल असाधारण मामलों में गिरफ्तारी का प्रावधान करता है.

जी. फेमा भारत के बाहर भारतीय नागरिक के निवासी पर लागू नहीं होता है.

फेरा के उद्देश्य क्या हैं?

FERA ने प्राथमिक रूप से उन सभी लेन-देनों को प्रतिबंधित किया है जिनकी RBI द्वारा अनुमति नहीं है. फेरा का उद्देश्य विदेशी मुद्रा और प्रतिभूतियों के लेनदेन में कुछ भुगतान लेनदेन को विनियमित करना था जो अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा के आयात और निर्यात के विदेशी मुद्रा को प्रभावित करता है और कीमती विदेशी मुद्रा को संरक्षित करने और विदेशी मुद्रा के उचित उपयोग को अनुकूलित करने के लिए ताकि आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके. देश.

फेरा के समय फेमा की क्या आवश्यकता थी?

जब 1973 में FERA की शुरुआत की गई, तो भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा (विदेशी मुद्रा) भंडार के सर्वकालिक निम्न स्तर से पीड़ित थी. इन भंडारों के पुनर्निर्माण के लिए, सरकार ने एक रुख अपनाया कि भारतीय निवासियों द्वारा अर्जित सभी विदेशी मुद्रा - भारत या विदेश में रहने वाले - भारत सरकार के थे और उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को आत्मसमर्पण करना पड़ा. इस प्रकार, FERA ने उन सभी विदेशी मुद्रा लेनदेन को गंभीर रूप से विनियमित किया, जिनका भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव था, जिसमें मुद्रा का आयात और/या निर्यात शामिल था. हालाँकि, FERA के उद्देश्य का वह प्रभाव नहीं था जिसकी कल्पना की गई थी और भारतीय अर्थव्यवस्था जारी रही इसलिए इसे FEMA द्वारा बदल दिया गया.

फेरा की शुरुआत क्यों की गई?

FERA - फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट के लिए चार-अक्षर का संक्षिप्त नाम एक कानून है जो 1973 में विदेशी मुद्रा में कुछ सौदों को विनियमित करने, कुछ प्रकार के भुगतानों पर प्रतिबंध लगाने और विदेशी मुद्रा को प्रभावित करने वाले लेनदेन की निगरानी करने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया था. मुद्रा का आयात और निर्यात.

फेमा में कितने सेक्शन होते हैं?

फेमा में 49 खंडों में विभाजित 7 अध्याय हैं, जिनमें से 12 खंड परिचालन भाग और शेष उल्लंघन, दंड, निर्णय, अपील, प्रवर्तन निदेशालय आदि को कवर करते हैं.

पूर्ण सिंचाई क्या है?

पूर्ण कवरेज सिंचाई (एफसीआई) एक सिंचाई डिजाइन और प्रबंधन दर्शन है जो सिंचाई प्रणाली को कृषि प्रणाली पर बेहतर कृषि नियंत्रण देने के लिए समग्र दृष्टिकोण में सिंचाई प्रणाली को सूचीबद्ध करता है.

फेमा: फेरा से एक प्रमुख प्रस्थान

जैसा कि अधिनियम के नाम से ही स्पष्ट है, फेमा के तहत 'विनिमय प्रबंधन' पर जोर दिया गया है जबकि फेरा के तहत 'विनिमय विनियमन' या विनिमय नियंत्रण पर जोर दिया गया है. FERA के तहत अधिकांश विनियमों के संबंध में रिज़र्व बैंक की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक था, या तो विशेष या सामान्य. फेमा ने इस संबंध में एक बड़ा बदलाव किया है और धारा 3 को छोड़कर जो विदेशी मुद्रा आदि में लेनदेन से संबंधित है, फेमा के अन्य कोई प्रावधान रिजर्व बैंक की अनुमति प्राप्त करने के लिए निर्धारित नहीं हैं.

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 की मुख्य विशेषताएं

यह केंद्र सरकार को देश के बाहर स्थित किसी व्यक्ति को भुगतान के प्रवाह को विनियमित करने की शक्ति देता है. विदेशी प्रतिभूतियों या विनिमय से संबंधित सभी वित्तीय लेनदेन फेमा के अनुमोदन के बिना नहीं किए जा सकते. सभी लेनदेन "अधिकृत व्यक्तियों" के माध्यम से किए जाने चाहिए. जनता के सामान्य हित में, भारत सरकार एक अधिकृत व्यक्ति को चालू खाते के भीतर विदेशी मुद्रा सौदों को करने से प्रतिबंधित कर सकती है. पूंजी खाते से लेनदेन पर प्रतिबंध लगाने के लिए आरबीआई को अधिकार देता है, भले ही यह किसी अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से किया गया हो. इस अधिनियम के अनुसार, भारत में रहने वाले भारतीयों को विदेशी मुद्रा, विदेशी सुरक्षा लेनदेन या किसी विदेशी देश में अचल संपत्ति रखने या रखने का अधिकार है, जब सुरक्षा, संपत्ति, या मुद्रा अर्जित की गई थी, या स्वामित्व में था. व्यक्ति देश के बाहर स्थित था, या जब वे देश से बाहर रहने वाले व्यक्ति से संपत्ति प्राप्त करते हैं.

क्या भारत में फेमा लागू है?

FEMA का अर्थ है 'विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम', एक आधिकारिक अधिनियम जो भारत में विदेशी मुद्रा को विनियमित करने वाले कानूनों को समेकित और संशोधित करता है. FEMA को भारत की संसद द्वारा 1999 के शीतकालीन सत्र में 1973 के विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) को बदलने के लिए अधिनियमित किया गया था. RBI ने 1999 में FEMA को विदेशी व्यापार और विनिमय लेनदेन के प्रशासन के लिए प्रस्तावित किया था. विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम आधिकारिक तौर पर 1 जून 2000 को लागू हुआ.

फेमा का क्या महत्व है?

फेमा का मुख्य उद्देश्य भारत में बाहरी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाने में मदद करना था. यह भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास और रखरखाव में मदद करने के लिए भी था. यह भारत में सभी विदेशी मुद्रा लेनदेन की प्रक्रियाओं, औपचारिकताओं, लेनदेन को परिभाषित करता है.

भारत में फेमा कहाँ लागू है?

फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) पूरे भारत में लागू होता है और भारत के बाहर स्थित एजेंसियों और कार्यालयों पर समान रूप से लागू होता है (जिसका स्वामित्व या प्रबंधन एक भारतीय नागरिक द्वारा किया जाता है). फेमा का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और इसे प्रवर्तन निदेशालय के रूप में जाना जाता है.

फेमा की विशेषताएं क्या हैं?

फेमा केंद्र सरकार को देश के बाहर स्थित किसी व्यक्ति को भुगतान करने या उनके माध्यम से धन प्राप्त करने जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति देता है. इसके अलावा, विदेशी मुद्रा के साथ-साथ विदेशी सुरक्षा सौदे भी फेमा द्वारा प्रतिबंधित हैं.

फेमा अधिनियम के उल्लंघन के लिए दंड क्या है?

फेमा के तहत, न्यायनिर्णायक (ईडी के साथ एक अधिकारी) शामिल उल्लंघन के आकार का तीन गुना जुर्माना लगा सकता है, जहां राशि मात्रात्मक है. यदि उल्लंघन मात्रात्मक नहीं है, तो जुर्माना 2 लाख रुपये निर्धारित किया गया है. इसके अलावा, जहां उल्लंघन जारी है, उल्लंघन के प्रति दिन 5,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है.

फेमा फेरा से कैसे बेहतर है?

FERA भारत में भुगतान और विदेशी मुद्रा को विनियमित करने के लिए प्रख्यापित एक अधिनियम है. FEMA बाहरी व्यापार और भुगतान की सुविधा के लिए और देश में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया एक अधिनियम है.