LTTE Full Form in Hindi




LTTE Full Form in Hindi - LTTE की पूरी जानकारी?

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LTTE Full form in Hindi

LTTE की फुल फॉर्म “Liberation Tigers of Tamil Eelam” होती है. LTTE को हिंदी में “तमिल ईलम के लिबरेशन टाइगर्स” कहते है.

लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE), एक अलगाववादी उग्रवादी संगठन, जो पहले उत्तरी श्रीलंका में स्थित था, से जुड़े विभिन्न संगठन थे. इनमें धर्मार्थ संगठन, राजनीतिक दल, राज्य के खुफिया संगठन और यहां तक ​​कि श्रीलंका और अन्य देशों की सरकारें भी शामिल हैं. हालांकि लिट्टे को 2009 में सैन्य रूप से पराजित किया गया था, श्रीलंका सरकार का आरोप है कि कई विदेशी-आधारित संगठन अभी भी इसकी विचारधारा को बढ़ावा दे रहे हैं.

What Is LTTE In Hindi

श्रीलंका में तमिलों के साथ कथित भेदभाव और नस्लीय सफाए के बीच स्थापित अलगाववादी संगठन एलटीटीई यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम करीब तीन दशकों तक अपने आतंक और दहशत से श्रीलंका को दहलाता रहा. एक दौर में लिट्टे का उत्तरी श्रीलंका पर पूरा नियंत्रण था और वहां उसकी समांनतर सरकार चलती थी.

श्रीलंका में तमिलों के साथ कथित भेदभाव और नस्लीय सफाए के बीच स्थापित अलगाववादी संगठन एलटीटीई यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम करीब तीन दशकों तक अपने आतंक और दहशत से श्रीलंका को दहलाता रहा. अपनी अलग राज्य की मांग को पूरा करने के लिए इस संगठन ने न केवल सबसे पहले आत्मघाती दस्ते की शुरुआत की बल्कि हजारों निर्दोष लोगों के साथ कई राजनीतिक हस्तियों को भी मौत के घाट उतार दिया. एक दौर में लिट्टे का उत्तरी श्रीलंका पर पूरा नियंत्रण था और वहां उसकी समांनतर सरकार चलती थी. हालांकि श्रीलंका सरकार और सेना ने साल 2009 में लिट्टे के मुखिया वेणुपिल्लई प्रभाकरन समेत लिट्टे का श्रीलंका से सफाया कर दिया. लेकिन लिट्टे समर्थक और अलग ईलम राज्य को चाहने वाले अभी भी दुनियाभर में फैले हुए हैं, जो आज भी लिट्टे समर्थकों की मदद करते हैं. वेलुपिल्लई प्रभाकरन वेल्वेत्तिथूरै के उत्तरी तट पर 26 नवम्बर 1954 को, थिरुवेंकदम वेलुपिल्लई और वल्लिपुरम पार्वती के यहां पैदा हुए. वो अपने माता-पिता और चार बच्चों में सबसे छोटे थे. श्रीलंकाई सरकार द्वारा दिखाये गए तमिल लोगों के प्रति भेदभाव को देख, नाराज़ हो कर, वह छात्र संगठन टीआईपी में मानकीकरण बहस के दौरान शामिल हो गए. 1972 में प्रभाकरन ने तमिल न्यू टाइगर्स की स्थापना की, जो अनेक संगठनों के उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया, जो देश में औपनिवेशिक राजनीतिक दिशा के खिलाफ जाने वालों का विरोध करता था, इनमें श्री लंकाई तमिलों को सिंहली लोगों से नीचा दिखाया जाता था. वर्ष 1975 में, तमिल आंदोलन में गंभीर रूप से शामिल होने के बाद वह एक तमिल आतंकवादी समूह द्वारा, एक ह्त्या में शरीक हुए, जाफना के मेयर, अल्फ्रेड दुरैअप्पा की उस समय गोली मार कर ह्त्या कर दी गई जब वे पोंनालाई में एक हिंदू मंदिर में प्रवेश करने वाले थे. 1976 में प्रभाकरन ने लिट्टे की स्थापना की जो सशस्त्र संगठन था. इस संगठन ने 1983 में जाफना के बाहर श्रीलंकाई सेना के एक गश्ती दल पर घात लगाकर हमला किया जिसमें 13 सैनिकों की मौत हो गई. इस हमले के बाद श्रीलंका में भीषण नरसंहार हुआ जिसके परिणामस्वरूप हजारों तमिल नागरिकों की मौत हुई. यहीं से श्रीलंका में गृहयुद्ध की शुरुआत हो गई. लिट्टे, जिसे तमिल टाइगर्स के रूप में भी जाना जाता था उसने प्रभाकरन के नेतृत्व में उत्तरी श्रीलंका में बड़े हिस्से को नियंत्रित कर लिया. इतना ही नहीं पूर्वी श्रीलंका में प्रभाकरन सरकार के खिलाफ अपना स्वतंत्र राज्य चलाने लगे. श्रीलंकाई सेना ने वार्ता असफल होने के बाद 2006 में लिट्टे को हराने के लिए एक सैन्य अभियान शुरू किया.

प्रभाकरन का आदेश था कि लिट्टे का हर लड़ाका अपने गले में साइनाइड कैप्सूल पहनकर चले और पकड़े जाने की स्थिति में उसे खाकर अपनी जान दे दे. प्रभाकरन के गर्दन में भी काले धागे से एक साइनाइड कैप्सूल टंगा रहता था, जिसे वो अक्सर अपनी कमीज की जेब में एक आईडी कार्ड की तरह डाल देते थे. इसके अलावा प्रभाकरन को खाना पकाने का भी शौक था और प्रिय भोजन चिकर करी था.

साल 1972 में जब वो एक पेड़ के नीचे कुछ लोगों को बम बनाते देख रहा था तो एक बम में विस्फोट हो गया था और प्रभाकरन बाल-बाल बच गया था. इस दुर्घटना में उसका दांया पैर जलकर काला पड़ गया था. तभी से उनका नाम 'करिकलन' पड़ गया था जिसका अर्थ होता है काले पैर वाला व्यक्ति. चॉकलेट और केकड़ों को उबाल कर खाने के शौकीन प्रभाकरन ने अपने अनुयायियों के सिगरेट और शराब पीने और यौन संबंध स्थापित करने पर पाबंदी लगा दी थी. उसके निजाम में एलटीटीई सैनिकों को प्रेम संबंध बनाने की मनाही थी. गद्दारी की सिर्फ एक ही सजा थी, मौत. उन्होंने अपने दो पुरुष और महिला अंगरक्षकों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतारने का आदेश दिया था क्योंकि उन्होंने संबंध बनाने की जुर्रत की थी. दिलचस्प बात ये है कि जब अपने ऊपर बात आई तो प्रभाकरन ने ये नियम तोड़ा और मतिवत्थनी इराम्बू से विवाह किया.

गृहयुद्ध की गंभीरता -

वर्ष 1985- सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच शांति वार्ता की पहली कोशिश नाकाम हो गई.

वर्ष 1987- सरकारी सेनाओं ने उत्तरी शहर जाफना में तमिल विद्रोहियों को और पीछे हटा दिया. सरकार ने एक ऐसे समझौते पर दस्तखत किए जिनके तहत तमिल बाहुल्य इलाकों में नई परिषदों का गठन किया जाना था. भारत के साथ भी समझौता हुआ जिसके तहत वहां भारत की शांति सेना की तैनाती हुई.

वर्ष 1988 - वामपंथी धड़े और सिंहलों की राष्ट्रवादी पार्टी, जनता विमुक्ति पैरामुना (जेवीपी) ने भारत-श्रीलंका समझौते के खिलाफ अभियान शुरू किया.

वर्ष 1990- उत्तरी क्षेत्र में काफी लड़ाई को देखते हुए भारतीय सेना ने देश छोड़ दिया. श्रीलंका की सेना और पृथकतावादी तमिल विद्रोहियों के बीच हिंसा और बढ़ गई.

साल 1986 का दौर जब भारत-श्रीलंका समझौते को लेकर चर्चओं का दौर था. प्रभाकरन को भारत लाने के लिए श्रीलंका की अनुमति से वायुसेना के दो विमान जाफना पहुंचते हैं. उस विमान में भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हरदीप पुरी भी गए थे. दिल्ली पहुंचने पर प्रभाकरन को अशोका होटल में ठहराया गया. प्रभाकरन ने बातचीत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रण को भी शामिल करने की मांग की. राजीव गांधी ने प्रभाकरण की ये मांग मान ली और एमजीआर दिल्ली पहुंचे. जुलाई 1987 को दिल्ली के 10 जनपथ में राजीव गांधी के निवास पर एक बैठक हो रही थी. उस बैठक में राजीव गांधी के ठीक सामने लिट्टे का कमांडर प्रभाकरण बैठा था. दिल्ली के अशोका होटल में ठहरे प्रभाकरण को खुफिया निगरानी में राजीव गांधी के समक्ष लाया गया था. प्रभाकरण ने कहा कि श्रीलंता सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. राजीव गांधी ने कहा कि वह तमिलों के हितों के लिए काम कर रहे हैं. अंतत: प्रभाकरण भारत- श्रीलंका समझौते को एक मौका देने के लिए तैयार हो गए. जिससे राजीव गांधी बेहद ही खुश हुए. उन्होंने तुरंत प्रभाकरण के लिए खाना मंगवाया. खाना खाने के बाद प्रभाकरण जब वहां से रवाना होने लगे तो राजीव गांधी ने राहुल गांधी को बुलाया और अपना बुलेट प्रूफ जैकेट लाने को कहा. प्रभाकरण को जैकेट देते हुए राजीव ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप अपना ख्याल रखिएगा. राजीव गांधी के मंत्रिमंडल के एक सदस्य ने उनसे कहा कि प्रभाकरन को तब तक भारत में रखा जाए, जब तक एलटीटीई के लोग हथियार नहीं डाल देते. लेकिन राजीव गांधी नहीं माने और कहा कि प्रभाकरन ने मुझे अपनी जुबान दी है. मैं उन पर विश्वास करता हूं. 21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में तीस बरस की एक छोटे कद की लड़की चंदन का एक हार लेकर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरफ़ बढ़ी. जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए झुकी, एक जोरदार धमाके ने वहां सन्नाटा कर दिया. हालांकि प्रभाकरन की कोशिश थी कि इस हत्याकांड में उसका नाम न आए लेकिन लिट्टे का एक फोटोग्राफर मौके से भाद नहीं पाया और उसी धमाके की चपेट में आ गया. बाद में उसके कैमरे में प्रभाकरन समेत कई लोगों की तस्वीक पाई गई थी. राजीव गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए भारत ने श्रीलंका सरकार की मदद भी की और उसे एम-17 हेलीकॉप्टर समेत कई अन्य मिलिट्री इक्विपमेंच भी मुहैया करवाएं.

वर्ष 2008 - श्रीलंका सरकार ने 2002 के शांति समझौते को बेमानी बताते हुए इससे अपने हाथ खींच लिए. जुलाई में सरकार ने दावा किया कि उन्होंने तमिल विद्रोहियों के देश के उत्तर में स्थित नौसेना बेस पर कब्जा कर लिया है. इसी वर्ष अक्टूबर में हुए आत्मघाती हमलों में एक पूर्व जनरल समेत 27 लोग मारे गए. इसका भी आरोप एलटीटीई पर लगा. यहां से खुली लड़ाई की बात शुरू हो गई. श्रीलंका की सेना और एलटीटीई की ओर से एक दूसरे के लोगों को मारने की दावेदारियां शुरू हो गईं. साल 2009 के जनवरी में 10 वर्षों से एलटीटीई के कब्जे में रहे किलिनोच्चि शहर पर अपना कब्जा कर लिया. यह शहर एलटीटीई का प्रशासनिक मुख्यालय था. राष्ट्रपति ने तमिल विर्दोहियों से समर्पण करने को कहा. अप्रैल और मई में सेना का अभियान अपने चरम पर पहुंच गया. एलटीटीई का दायरा लगातार घटता गया. एक छोटे से इलाके में सिमटे तमिल विद्रोहियों के बीच फंसे हजारों लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का मुद्दा उठता रहा. हजारों लोग खुद युद्ध क्षेत्र में भागकर बाहर आए. सैकड़ों मारे गए. अपनी अंतिम लड़ाई में प्रभाकरन मोलाएतुवू क्षेत्र में तीन तरफ़ से घिर गया और चौथी तरफ़ समुद्र था जहां श्रीलंका की सेना ने अपना जाल बिछा रखा था. श्रीलंकाई सेना रेडियो पर उनकी बातचीत सुन रही थी, इसलिए उन्हें प्रभाकरन की लोकेशन का अंदाज़ा था. 21 मई 2009 को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई या लिट्टे) के संस्थापक वेलुपिल्लई प्रभाकरण को श्रीलंका की सेना ने मौत के घाट उतार दिया था. इसी के साथ श्रीलंका का जाफना क्षेत्र लिट्टे के आतंक से आजाद हो गया था. प्रभाकरण के मार जाने के बाद लिट्टे ने हार मानते हुए अपनी बंदूकें शांत करने की घोषणा की थी. एक गोली उनके माथे को चीरती चली गई थी, जिसने उनके कपाल को क्षतविक्षत कर दिया था. इसके अलावा उनके शरीर पर चोट का एक भी निशान नहीं था. प्रभाकरन की मौत के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे ने संसद में ऐलान किया था, "आज से श्रीलंका में कोई अल्पसंख्यक नहीं होगा. अब से यहां सिर्फ़ दो किस्म के लोग होंगे, एक जो अपने देश को प्यार करते है और दूसरे वो जिन्हें उस धरती से कोई प्यार नहीं है, जहां उनका जन्म हुआ है."

LTTE पर प्रतिबंध ?

दरअसल, 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत में LTTE पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. सरकार ने अपने गजट अधिसूचना में कहा है कि LTTE श्रीलंका का हिंसक व अलगाववादी संगठन है लेकिन भारत में इसके समर्थकों से सहानुभूति रखने वालों और एजेंटों का उद्देश्य सभी तमिलों के लिये एकमात्र भूमि तमिल ईलम की स्थापना करना है जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिये खतरा है. यह गैर-कानूनी गतिविधि के दायरे में आता है. इस वज़ह से LTTE को तुरंत प्रभाव से गैर-कानूनी संगठन घोषित करना ज़रूरी था. अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि LTTE ने मई 2006 में श्रीलंका में अपनी हार के बाद भी ईलम की अवधारणा को नहीं छोड़ा है. उसके बाद भी यह संगठन यूरोप में धन उगाही और प्रचार गतिविधियों को अंजाम देकर ईलम के प्रति दृढ़ता से काम कर रहा है. इसके साथ ही लिट्टे नेताओं और कैडरों ने बिखरे हुए कार्यकर्त्ताओं को फिर से संगठित करने की कोशिश शुरू कर दी है. साथ ही स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगठन को फिर से जिंदा करने में भी इस संगठन के लोग जुट गए हैं.

भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु में LTTE अपना समर्थन आधार बढ़ाने में लगा हुआ है. इसके लिये LTTE इंटरनेट पोर्टल के ज़रिये विदेशों में रहने वाले लोगों का समर्थन पाने की कोशिश कर रहा है. सरकार ने LTTE पर आरोप लगाया कि वह अपने गैर-कानूनी गतिविधियों को जारी रखने के लिये सोशल मीडिया का भी प्रयोग कर रहा है. अधिसूचना में इस बात का उल्लेख किया गया है कि LTTE अपनी हार के लिये भारत को ज़िम्मेदार मानता है. इसे लेकर LTTE इंटरनेट पोर्टल में लेखों और अन्य सामग्रियों के ज़रिये श्रीलंकाई तमिलों के बीच भारत विरोधी भावना को भड़काने की कोशिश कर रहा है. सरकार का मानना है कि इंटरनेट के ज़रिये अगर ऐसा प्रचार जारी रहता है तो भारत में अनेक VVIP व्यक्तियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है.

LTTE का गठन -

LTTE का गठन 70 के दशक में हुआ था जब ज़्यादातर किसान परिवार आर्थिक सुधारों से पूरी तरह प्रभावित थे. श्रीलंका का यह हिंसक, अलगाववादी संगठन उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका को मिलाकर एक स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना करना चाहता था. एशिया के इतिहास में एक अलग राज्य तमिल ईलम की मांग को लेकर सबसे लंबे समय तक गृहयुद्ध श्रीलंका में ही देखने को मिला. इस संगठन का नेता वेल्लुपिल्लई प्रभाकरन था.

LTTE का इतिहास -

1970 के दशक का श्रीलंका उत्तर और पूर्वी क्षेत्र में लागू आर्थिक सुधारों से काफी परेशान था. इस इलाके में तमिल लोगों का दबदबा था.

इसी दौर में तमिल लोगों की एक अलग तमिल राज्य की मांग धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ने लगी.

1972 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने तमिल न्यू टाइगर नाम का एक संगठन शुरू किया जिसमें युवा स्कूली बच्चे शामिल किये गए थे.

1976 में संगठन का नाम बदलकर लिबरेशन टाइगर ऑफ़ तमिल ईलम रखा गया. 1976 में ही विलिकाडे नरसंहार को अंजाम देकर LTTE एक कुख्यात संगठन के तौर पर मशहूर हो गया था.

LTTE दुनिया के सबसे खतरनाक आत्मघाती हमलावर के रूप में मशहूर हो गया था लिसके लड़ाके ताबीज में सायनाइड के कैप्सूल बांधकर चलते थे.

प्रभाकरन के नेतृत्व में आत्मघाती दस्तों ने कई बार श्रीलंका की सेना और राजनीतिक नेताओं को अपना निशाना बनाया.

1980 के दशक के आते-आते LTTE को विदेशों से समर्थन मिलने लगा था. हथियार खरीदने और दूसरी गतिविधियों के लिये LTTE के पास पैसा विदेशों में रहने वाले तमिलों से आता था. इनमें से ज़्यादातर पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों तथा आस्ट्रेलिया में रहने वाले तमिल लोग थे.

2001 में ब्रिटेन द्वारा LTTE पर प्रतिबंध लगाने तक संगठन का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय लंदन में ही था लेकिन पेरिस में LTTE का कार्यालय 2002 तक ज़्यादातर काम संभालता रहा.

वर्ष 2000 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने LTTE को आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर दिया था, वहीँ उसके बाद कई और देशों ने भी LTTE की गतिविधियों और उसके समर्थकों द्वारा चंदा एकत्रित करने पर रोक लगा दी थी.

ंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तरफ से LTTE पर हिंसा का रास्ता त्यागकर बातचीत के ज़रिये अपनी समस्या सुलझाने का दबाव बनने लगा.

1985 में श्रीलंका सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच शांति वार्ता की पहली कोशिश नाकाम हो गई.

वर्ष 1987 में सरकारी सेनाओं ने उत्तरी शहर जाफना में तमिल विद्रोहियों को और पीछे हटा दिया.

सरकार ने एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत तमिल बाहुल्य इलाकों में नई परिषदों का गठन किया जाना था.

इधर भारत के साथ भी श्रीलंका सरकार का समझौता हुआ जिसके तहत 1987 में वहाँ भारत की शांति सेना की तैनाती हुई.

वर्ष 1988 में वामपंथी धड़े और सिंहलों की राष्ट्रवादी पार्टी जनता विमुक्ति पैरामोना ने भारत-श्रीलंका समझौते के खिलाफ अभियान शुरू किया.

1990 में उत्तरी क्षेत्र में संघर्ष को देखते हुए भारतीय सेना वहाँ से वापस आ गई. श्रीलंका की सेना और पृथकतावादी तमिल विद्रोहियों के बीच हिंसा और बढ़ गई लेकिन LTTE इतना कमज़ोर नहीं था.

उन्होंने आत्मघाती बेल्ट और आत्मघाती बम विस्फोट के आविष्कार को अपनी रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया.

वर्ष 1991 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में मौत हो गई जिसके लिये तमिल विद्रोहियों को ही ज़िम्मेदार ठहराया गया.

इसके बाद श्रीलंका सरकार के साथ प्रभाकरन की बातचीत के दौर की शुरुआत हुई. वर्ष 2002 में हथियार छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई. जाफना को श्रीलंका के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली सड़क 12 साल के बाद खुली.

पहले दौर की बातचीत थाईलैंड में शुरू हुई. दोनों पक्षों ने पहली बार युद्ध कैदियों की अदला-बदली की. तमिल विद्रोहियों ने अलग राज्य की मांग छोड़ दी जो एक बड़ी घटना थी.

इसी साल दिसंबर में नार्वे में हुई शांति वार्ता में दोनों पक्ष सत्ता बँटवारे पर सहमत हुए और अल्पसंख्यक तमिलों को मुख्य रूप से तमिल भाषी पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्वायत्तता देने की बात हुई.

वर्ष 2003 में फरवरी में शांति वार्ता का अगला दौर बर्लिन में संपन्न हुआ लेकिन अप्रैल में ही तमिल विद्रोहियों ने शांति वार्ता से यह कहते हुए हाथ खींच लिया कि उन्हें नज़रंदाज़ किया जा रहा है.

2006 की शांति प्रक्रिया के पूरी तरह से असफल होने के बाद श्रीलंकाई सैनिकों ने टाइगर्स के खिलाफ आक्रामक अभियान शुरू कर दिया. सरकार ने LTTE को पराजित कर पूरे देश को अपने नियंत्रण में ले लिया.

टाइगर्स पर अपनी विजय को श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे द्वारा 16 मई, 2009 को घोषित किया गया और LTTE ने 17 मई, 2009 को हार स्वीकार कर ली.

19 मई, 2009 को ही सेना ने विद्रोही नेता प्रभाकरन को मार गिराया जिसके साथ ही LTTE का अंत मान लिया गया.

हालाँकि अभी भी इसके बचे हुए नेता दुनिया के कई देशों में फैले हुए हैं जो एक बार फिर इस संगठन को खड़ा करना चाहते हैं.

LTTE की आतंकी घटनाएँ ?

LTTE ने अपने गठन के बाद से ही आतंकी वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया था. वर्ष 1983 में LTTE ने घात लगाकर हमला किया जिसमें श्रीलंकाई सेना के 13 सैनिक मारे गए. इसके बाद तमिल विरोधी दंगे भड़क गए जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई. LTTE ने सिलसिलेवार ढंग से बड़े-बड़े हमलों को अंजाम दिया. वर्ष 1985 में महाबोधि हमले में LTTE ने अनुराधापुरा के एक मठ में 146 लोगों की हत्या कर दी. इसके अलावा 1987 में LTTE ने श्रीलंका में एक बम धमाके में 113 लोगों की हत्या कर दी. इस हमले को कोलंबो सेंट्रल बस अड्डा धमाका के नाम से याद किया जाता है. इसी साल अलुथ ओया नरसंहार हुआ जिसमें LTTE ने सिंहली बौद्ध के 127 लोगों को मौत के घाट उतारा था, वहीँ 1990 में इस अलगाववादी संगठन ने कुट्टनकुड़ी मस्जिद को निशाना बनाया जिसमें 147 लोगों की जान गई.

LTTE ने 1991 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की और वर्ष 1993 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी. 1995 में LTTE ने श्रीलंकाई सेना के विमान पर हमला कर उसे गिरा दिया. इसी वर्ष LTTE ने श्रीलंका नौसेना के दो नावों को डुबो दिया था. इसके अलावा 1995 से 2001 तक तथाकथित तीसरे ईलम युद्ध के दौरान LTTE के अलगाववादियों ने श्रीलंका के साथ अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रिका कुमारतुंगे पर हमला हुआ जिसमें वह बाल-बाल बच गईं. वर्ष 2004 में LTTE ने कोलंबो में एक आत्मघाती हमला किया जो 2001 के बाद का सबसे बड़ा हमला था. अगस्त 2005 में LTTE ने श्रीलंका के विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमर की हत्या कर दी जिसके बाद श्रीलंका में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई. वर्ष 2006 में LTTE ने एक बार फिर एक बड़ी घटना को अंजाम दिया. इस हमले को दिगमपटाया नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है जिसमें श्रीलंकाई सेना को निशाना बनाते हुए 120 नाविकों को मौत के घाट उतार दिया गया था.