FIR Full Form in Hindi




FIR Full Form in Hindi - FIR की पूरी जानकारी हिंदी में

FIR Full Form in Hindi, FIR Full Form, FIR की फुल फॉर्म इन हिंदी, दोस्तों क्या आपको पता है FIR की full form क्या है, FIR क्या होती है, FIR का क्या मतलब होता है, FIR का use कहाँ करते है, अगर आपका answer नहीं है तो आपको उदास होने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि आज हम इस post में आपको FIR की पूरी जानकारी हिंदी भाषा में देने जा रहे है तो फ्रेंड्स FIR Full Form in Hindi में और FIR की पूरी history जानने के लिए इस post को लास्ट तक पढ़े.

क्या आप जानते है की FIR का Full form क्या होता है? और इसका उपयोग कौन लोग करते है ? World के सभी देशों में FIR का मतलब एक जैसा ही होता है, तो आईये जानते है की FIR क्या होता है पूरी जानकारी FIR से जुडी कुछ जानकारी, आप सभी ने कभी न कभी FIR का नाम सुना होगा. आमतौर पर आपसी झगड़ों या चोरी इत्यादि के मामलों में FIR से नाता पड़ ही जाता है Police Department से सबंधित FIR कोई आम शब्द नही है बल्कि आपकी ज़िंदगी के सबसे बड़े rights में से एक है. आइए जानते हैं FIR का पूरा नाम व इसके बारे में जानकारी.

FIR Full Form in Hindi

FIR की फुल फॉर्म “First Information Report” होती है, हिंदी भाषा में इसे “प्रथम सुचना विवरण” कहा जाता है. अगर हम सिंपल भाषा में कहे तो यह किसी भी आपराधिक घटना के संबंध में police को दी जाने वाली सुचना होती है.

FIR police के द्वारा तैयार किया गया एक written document होता है, दोस्तों जब कोई क्राइम होता है और कोई व्यक्ति उस क्राइम की जानकारी police को देता है तब police उस जानकारी देने वाले व्यक्ति की और से उसकी शिकायत पर एक दस्तावेज तैयार करती है, और इस दस्तावेज को ही FIR कहा जाता है.

आपको पता ही होगा एक serious crime में, एक police अधिकारी को वारंट के बिना भी गिरफ्तारी करने का पूरा अधिकार होता है, दोस्तों FIR की कई copy बनाई जाती है और एक copy पीड़ित व्यक्ति को भी दी जाती है, जैसा की आप जानते है FIR एक बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज है क्योंकि यह आपराधिक न्याय की प्रक्रिया में police अधिकारी की बहुत ज्यादा मदद करता है FIR registered होने के बाद ही police जांच शुरू कर सकती है.

पुलिस में FIR का फुल फॉर्म क्या होता है?

FIR की full form “First Information Report” होती है, जैसा कि नाम से ही जाहिर है, कि यह सबसे पहले दी जाने वाली एक Information है. FIR को हिन्दी में “प्रथम सूचना रपट” अथवा प्राथमिकी कहा जाता है यह किसी भी अपराध की तत्कालीन Information का लिखित दस्तावेज होता है. जब कोई अप्रिय घटना होने के बाद हम पुलिस स्टेशन जाते हैं तथा हम अपनी Information के अनुसार घटना का जो ब्यौरा पुलिस को देते हैं पुलिस सर्वप्रथम उस ब्यौरे को लिखित रूप में दर्ज करती है. इसी लिखित रूप में दर्ज Information को FIR कहा जाता है. FIR में दी गई Information के आधार पर ही पुलिस आगे की कार्यवाही करती है. कोई भी व्यक्ति जो किसी अप्रिय घटना का शिकार हुआ है घटना की FIR दर्ज करवाकर criminals को सज़ा देने के लिए पुलिस से अपील कर सकता है यदि पुलिस की Investigation में अपराध की पुष्टि हो जाती है तो दोषी को दंडित करने हेतु उसे अरेस्ट कर लिया जाता है, तत्प्श्चात Law process से गुजरने के बाद अपराधी को निश्चित दंड दिया जाता है यह एक न्याय प्रक्रिया होती है.

दोस्तों दुनिया में बहुत से लोग ऐसे जो कई अपराधों से घिरे हुए होते है. इसलिए ऐसे लोगों के लिए एक Police department बनाया गया है, जिसमें लोगों के द्वारा किये गए अपराधों के लिए FIR लिखी जाती है, FIR एक Document होता है. यह एक ऐसा Document होता है, जिसके आधार पर अपराध करने वाले अपराधी को सजा दिलाने के लिए पुलिस कार्यवाही शुरू करती है. इसके बाद उसे उसके जुर्म के मुताबिक़ सजा देती है. जैसे- जब किसी सामान की चोरी हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में Insurance claim करने के लिए FIR अवश्य लिखी जाती है, जिसके बाद ही आगे की कार्यवाही शुरू की जाती है. इसलिए यदि आप भी FIR के विषय में जानना चाहते हैं, तो यहाँ पर आपको FIR Full Form in Hindi , FIR का क्या मतलब होता है, इसकी पूरी जानकारी प्रदान की जा रही है.

FIR दर्ज करने की प्रक्रिया बहुत सरल है. पुलिस को कहानी सुनाना उतना ही सरल है. मुखबिर को पुलिस स्टेशन (आदर्श रूप से अपराध स्थल के पास) का दौरा करना पड़ता है और वह सभी सूचनाओं को प्रस्तुत करता है जो वह अपराध के कमीशन से संबंधित है. सीआरपीसी की धारा 154 मुखबिर को सूचना या लिखित रूप में प्रस्तुत करने का विकल्प देती है. यदि सूचना का मौखिक रूप से खुलासा किया जाता है, तो रिपोर्ट को पुलिस अधिकारी द्वारा स्वयं या उसके निर्देशन में लिखना कम कर दिया जाना चाहिए. रिपोर्ट को मुखबिर को पढ़ा जाना चाहिए. प्रत्येक रिपोर्ट चाहे वह लिखित रूप में कम हो या लिखित रूप में प्रस्तुत की गई हो, उसे मुखबिर द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा.

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) किसी भी व्यक्ति द्वारा दायर की जा सकती है. वह जरूरी नहीं कि पीड़ित हो या घायल हो या कोई चश्मदीद गवाह हो. पहली सूचना रिपोर्ट महज सुनवाई हो सकती है और जरूरी नहीं कि वह उस व्यक्ति द्वारा दी जाए जिसे पहले तथ्यों का ज्ञान हो.

संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की जा सकती है जिसके क्षेत्राधिकार में अपराध हुआ है. कथित आपराधिक गतिविधि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए सबसे पहले एक दोषी व्यक्ति को बुक करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने में सक्षम होना चाहिए. इसकी माध्यमिक हालांकि समान रूप से महत्वपूर्ण वस्तु एक कथित आपराधिक गतिविधि की प्रारंभिक जानकारी प्राप्त करना और परीक्षण से पहले परिस्थितियों को दर्ज करना है, ऐसा नहीं है कि ऐसी परिस्थितियों को भुला दिया गया है या अलंकृत किया गया है.

FIR क्या होता है? FIR का फुल फॉर्म क्या होता है?

कोई भी घटना जो Police के पास कार्यवाही के लिए लिखाई जाती है, FIR कहलाती है. इस Information को हम सभी के First Information Report नाम से भी जानते है, यह एक बहुत ही प्रचलित शब्द है. Police वालों को जब कोई अपराध की Information मिलती है, तो उनके द्वारा एक Written Document Ready किया जाता है यह वह Important सूचनात्मक Document होता है जिसके बेसिस पर Police क़ानूनी कार्यवाही को आगे बढाती है, Serious Crime के बारे में कोई ब्यक्ति जब चाहे रिपोर्ट लिखवा सकता है. FIR करने वाले ब्यक्ति का यह भी हक़ होता है FIR की रिपोर्ट उसको पढ़कर सुनाया जाय और उसकी एक Copy उसको भी दी जाय, निति यही कहती है. मगर ऐसा होता नहीं है. FIR के बाद पुलिस को यह पूरा Right होता है की वो आरोपी को Arrest करे और उसपर जांच करें FIR की Copy पर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर जरूर होने चाहिए.

FIR एक दस्तावेज होता है जिसके आधार पर दोषी को सजा दिलाने के लिए Police कार्यवाही शुरू करती है. किसी सामान के चोरी होने की स्थिति में बीमा क्लेम करने के लिए FIR जरूरी होती है. इसके अलावा आपकी चीज के Abuse का खतरा रहता है, जिससे आप किसी ऐसे अपराध में फंस जाते हैं जो आपने किया ही नहीं. ऐसी स्थिति में आपको किसी तरह के नुकसान से FIR बचाती है.

FIR का परिचय ?

FIR एक लिखित पत्र डाक्यूमेट है जो India Japan Pakistan देशों में Police द्वारा Cognizable Offense की सूचना प्राप्त होने पर तैयार किया जाता है, Police की जांच के लिए FIR लिखवाना अनिवार्य है यह व्यक्ति का पहला कदम होता है जिसमें FIR Police के द्वारा लिखी जाती है जिसमें व्यक्ति मौखिक रूप से बोलकर FIR में लिखवाता है जिसमें थाना अधिकारी और FIR दर्ज करवाने वाले व्यक्ति का सिग्नेचर होता है FIR लिखवाने के बाद Police आपको बोलकर सुनाती हैं आपने FIR में क्या क्या लिखवाया उसकी कॉपी आपको दी जाती है जिसमें बाद में Police एफ आई आर में कुछ भी ऐड ना करें हाईलाइट ना करें

FIR के लिए है. यह मूल जानकारी प्रदान करने वाला एक दस्तावेज है जिसे Serious crime माना गया है. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि FIR एक निर्णायक सबूत नहीं है कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है. FIR एक विशेष अपराध में जांच का प्रारंभिक बिंदु है. एक Serious crime के कमीशन से संबंधित हर जानकारी, यदि किसी थाने के प्रभारी अधिकारी को मौखिक रूप से दी जाती है, तो उसके द्वारा या उसके निर्देशन में लिखना कम कर दिया जाएगा, और मुखबिरों और ऐसी हर Information को पढ़ लिया जाएगा. इस लिखित Information की एक प्रति, मुखबिर को नि: शुल्क दी जाती है.

FIR किस अपराध में दर्ज की जाती है?

FIR एक ऐसा मजबूत Document है, जो यदि किसी संज्ञेय अपराध, के लिए दर्ज करवाया गया हो तो पुलिस मात्र FIR के बलबूते अपराधी को Arrest कर सकती है तथा बिना किसी देरी के जाँच पड़ताल करने हेतु स्वतंत्र होती है. संज्ञेय अपराधों में हत्या जैसे जुर्म आते हैं इन अपराधों में अपराधी की धर-पकड़ आवश्यक होती है इसलिए FIR के बलबूते पुलिस एक्शन ले सकती है. जबकि Non-cognizable offenses में न्यायालय की अनुमति अनिवार्य होती है. संज्ञेय अपराधों के अतिरिक्त FIR चोरी हुई वस्तु के लिए भी दर्ज करवाई जा सकती है जैसे कोई सामान, तथा महत्वपूर्ण Document (इम्पोर्टेन्ट डाक्यूमेंट्स) के खो जाने पर भी FIR करवाई जा सकती है, और कई मामलों में ने Document पुनः हासिल करने के लिए FIR अनिवार्य रूप से मांगी भी जाती है. जब आप खोई या चोरी हुए वस्तु की प्राथमिकी दर्ज करवाते हैं तो इससे इस बात का लिखित प्रमाण हो जाता है कि आपका Document या मोबाइल/ सिम कार्ड इस दिनांक, समय व स्थान से गुम हो गया है तथा यदि भविष्य में इनका कोई दुरुपयोग होता है तो इसमें Complainant का कोई दोष न समझा जाए. इसके अतिरिक्त यदि इन खोए हुए दस्तावेजों या समान की कहीं से बरामदगी हो तो Complainant को शिनाख्त हेतु तुरंत सूचित किया जाए.

FIR कैसे दर्ज कराई जाती है ?

दोस्तों यहाँ पर हम आपकी जानकारी के लिए बता दे की यदि आपके द्वारा किसी भी प्रकार का कोई भी crime हो जाता है, तो कोई दूसरा व्यक्ति आपके खिलाफ आपसे किसी भी प्रकार की Information प्राप्त किये बिना ही पुलिस में FIR दर्ज करा सकता है, और वहीं यदि आपको किसी के खिलाफ FIR दर्ज करानी होती है, और आप स्वयं जाकर FIR नहीं दर्ज कराना चाहते हैं, तो आपका घटना का चश्मदीद या कोई रिश्तेदार भी आपकी FIR दर्ज करा सकता है क्योंकि Emergency की स्थिति में पुलिस फोन कॉल या ई-मेल के आधार पर भी FIR दर्ज कर सकती है. लेकिन इसके लिए आपको पुलिस को घटना की तारीख और समय एवं आरोपी का पूरा विवरण देना होता है , क्योंकि FIR दर्ज कराने में इन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है. FIR दर्ज होने के बाद Complainant को इसकी मुफ्त में एक कॉपी भी प्रदान की जाती है. FIR में लिखा क्राइम नंबर भविष्य में रेफरेंस के तौर पर उपयोग में लाया जाता है. FIR की कॉपी पर थाने की मुहर व Police officer के हस्ताक्षर होने अति आवश्यक है.

FIR किन मामलों में दर्ज होती है ?

किन मामलों में दर्ज होती है FIR? आइये जानते है, सबसे पहले यह जानना जरूरी है, कि किस तरह के मामले में केस दर्ज होता है. Crime दो तरह के होते हैं .असंज्ञेय और संज्ञेय अपराध. असंज्ञेय Crime- असंज्ञेय Crime मामूली Crime होते हैं मसलन मामूली मारपीट आदि के मामले असंज्ञेय Crime होते हैं. ऐसे मामले में सीधे तौर पर FIR नहीं दर्ज की जा सकती, बल्कि शिकायत को Magistrate को रेफर किया जाता है और Magistrate इस मामले में आरोपी को समन जारी कर सकता है. फिर मामला शुरू होता है. यानी ऐसे मामले में चाहे जूरिस्डिक्शन हो या न हो किसी भी हाल में केस दर्ज नहीं हो सकता. संज्ञेय Crime- दूसरा मामला संज्ञेय Crime का होता है, जो गंभीर किस्म के Crime के होते हैं. ऐसे मामले में गोली चलाना, मर्डर व रेप आदि होते हैं, जिनमें सीधे FIR दर्ज की जाती है. CRPC की धारा-154 के तहत पुलिस को संज्ञेय मामले में सीधे तौर पर FIR दर्ज करना जरूरी होता है.

FIR कैसे दर्ज कराएं ?

FIR दर्ज कराने के लिए खुद से भी जाने की जरूरत नहीं है. घटना का चश्मदीद या कोई Relative भी प्राथमिकी दर्ज करा सकता है. इमर्जेंसी की स्थिति में पुलिस फोन कॉल या ई-मेल के आधार पर भी प्राथमिकी दर्ज कर सकती है. FIR में घटना की तारीख और समय एवं आरोपी का भी उल्लेख करना होता है. FIR दर्ज होने के बाद Complainant को इसकी मुफ्त में एक कॉपी पाने का अधिकार होता है. FIR में लिखा क्राइम नंबर भविष्य में रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. FIR की कॉपी पर थाने की मुहर व पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए.

FIR दर्ज कराने के क्या नियम होते हैं?

  • वह Primary व्यक्ति जो कोई भी Crime committed के बारे में जानकारी रखता हो.

  • पुलिस द्वारा FIR तब नोट की जाये जब Registered द्वारा Crime की मौखिक जानकारी पुलिस को दी गयी हो.

  • पीडि़त या FIR Registered को पूरा अधिकार है कि वह अपने द्वारा दर्ज करायी गयी FIR को पढ़ सके व अपनी एक कोपी मांग सके .

  • जानकारी दर्ज होने के बाद FIR करवाने वाले के हस्ताक्षर FIR पर कराये जाते हैं.

FIR दर्ज करते समय आपके भी कुछ अधिकार होते हैं, जैसा की आप पर पुलिस या अन्य कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार का कोई दबाव नही बना सकता है, दोस्तों आपको पता होना चहिए आपके द्वारा दर्ज की गई FIR को आपके दस्तखत करवाने से पहले पढ़ कर सुनाना या आपको पढ़ने की अनुमति देना पुलिस की जिम्मेदारी है, और ये आपका हक़ है, FIR को सही से सुनने या पढ़ने के बाद यदि आपको लगे कि आपके द्वारा दी गई सभी information सही व स्पष्ट रूप में इस FIR पुलिस के द्वारा दर्ज की गई है तो आप signature कर सकते हैं अन्यथा उचित बदलाव के लिए भी कह सकते हैं.

What is FIR in Hindi

FIR प्राथमिकी प्रथम सूचना रिपोर्ट के लिए है, यह पुलिस द्वारा तैयार किया गया एक लिखित दस्तावेज है. जब उन्हें संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी प्राप्त होती है. यह आमतौर पर पीड़ित व्यक्ति या किसी और की ओर से दायर की गई शिकायत है. जब FIR पुलिस द्वारा दर्ज की जाती है. तो पीड़ित या उसी व्यक्ति को एक हस्ताक्षरित प्रति भी दी जाती है जिसने FIR दर्ज की थी. पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती क्योंकि यह कानून के खिलाफ है.

एक FIR एक बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है क्योंकि यह आपराधिक न्याय की प्रक्रिया में मदद करता है. FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस जांच शुरू कर सकती है. एक बार FIR दर्ज होने के बाद, FIR की सामग्री को उच्च न्यायालय या भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अलावा नहीं बदला जा सकता है.

FIR रजिस्टर में जानकारी हर पुलिस स्टेशन में रखी गई है. एक प्राथमिकी पृष्ठ में निम्नलिखित जानकारी होती है.

  • FIR नंबर

  • अपराधी का नाम और विवरण (यदि ज्ञात हो)

  • अपराध का विवरण

  • अपराध का स्थान और समय

  • विक्टिम का नाम या शिकायत दर्ज करने वाले का नाम

  • साक्षी, यदि कोई हो.

FIR दर्ज करने के नियम क्या है ?

  • कोई भी एक प्राथमिकी दर्ज कर सकता है जो संज्ञेय अपराध के कमीशन के बारे में जानता है.

  • पुलिस को इसे तब लिखना चाहिए जब संज्ञेय अपराध के कमीशन की जानकारी मौखिक रूप से दी गई हो.

  • पीड़ित या शिकायत दर्ज करने वाले व्यक्ति को यह मांग करने का अधिकार है कि पुलिस द्वारा दर्ज की गई जानकारी उसे / उसे पढ़ी जाए.

  • FIR दर्ज करने के बाद, आपको FIR की कॉपी लेनी चाहिए. यदि पुलिस आपको यह प्रदान नहीं करती है, तो आपको FIR की प्रति मुफ्त में मांगना सही है.

  • जानकारी दर्ज होने के बाद, यह जानकारी देने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिए, यदि व्यक्ति लिख नहीं सकता है, तो वह दस्तावेज पर बाएं अंगूठे का निशान लगा सकता है.

पहली सूचना रिपोर्ट का अर्थ है एक पुलिस अधिकारी द्वारा ड्यूटी पर दर्ज की गई जानकारी जो कथित रूप से पीड़ित व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कथित अपराध के कमीशन पर दी गई हो, प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर, पुलिस अपनी जांच शुरू करती है. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154, पहली जानकारी के लिए क्या मात्रा के रूप में परिभाषित करता है.

FIR कौन दर्ज कर सकता है?

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) किसी भी व्यक्ति द्वारा दायर की जा सकती है. जरूरी नहीं कि वह पीड़ित हो या घायल हो या कोई चश्मदीद गवाह हो, प्रथम सूचना रिपोर्ट महज सुनवाई हो सकती है और जरूरी नहीं कि वह उस व्यक्ति द्वारा दी जाए जिसे पहले तथ्यों का ज्ञान हो.

जो कोई संज्ञेय अपराध के आयोग के बारे में जानता है, वह FIR दर्ज कर सकता है. यह जरूरी नहीं है कि केवल अपराध का शिकार व्यक्ति ही FIR दर्ज करे, एक पुलिस अधिकारी जो एक संज्ञेय अपराध के बारे में जानता है, वह खुद / खुद प्राथमिकी दर्ज कर सकता है.

आप FIR दर्ज कर सकते हैं यदि:

  • आप वह व्यक्ति हैं जिसके खिलाफ अपराध किया गया है.

  • आप अपने आप को एक अपराध के बारे में जानते हैं जो प्रतिबद्ध है.

  • आपने अपराध होते देखा है.

FIR कहां दर्ज करें?

संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की जा सकती है, जिसके क्षेत्राधिकार में अपराध हुआ है. पहले कथित आपराधिक गतिविधि के बारे में जानकारी प्राप्त करना है ताकि दोषी व्यक्ति को बुक करने के लिए ट्रेसिंग और लाने के लिए उपयुक्त कदम उठाए जा सकें.

इसकी माध्यमिक हालांकि समान रूप से महत्वपूर्ण वस्तु एक कथित आपराधिक गतिविधि की प्रारंभिक जानकारी प्राप्त करना और परीक्षण से पहले की परिस्थितियों को दर्ज करना है, ऐसा नहीं है कि ऐसी परिस्थितियों को भुला दिया गया है या अलंकृत किया गया है.

FIR तुरंत क्यों दर्ज की जानी चाहिए

यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में निर्धारित कानून का स्वर्णिम सिद्धांत है कि पहली सूचना रिपोर्ट हमेशा तुरंत और बिना किसी समय को बर्बाद किए दर्ज की जानी चाहिए, इस तरह की रिपोर्ट से अधिकतम विश्वसनीयता प्राप्त होती है और अदालतों द्वारा इसका हमेशा स्वागत और सराहना की जाती है.

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सबूतों को संवारने या दूर करने के लिए समय से पहले दर्ज की गई FIR उपयोगी है. यह संदेह को जन्म देने की संभावित संभावना को समाप्त करता है.

क्या FIR दर्ज करने के लिए समय अवधि निर्धारित है?

हमने पहले से ही इस तथ्य पर जोर दिया है कि जहां तक संभव हो और व्यावहारिक हो, हर प्राथमिकी को तुरंत, तेजी से और बिना किसी समय को बर्बाद किए दर्ज किया जाना चाहिए, ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जहाँ FIR दर्ज करने में समय की कुछ रियायत दी जानी चाहिए, लेकिन सम्मोहक परिस्थितियों में FIR दर्ज करने में उचित देरी के लिए कई कारण होने चाहिए. बहुत सारे ज्ञान और अनुभव वाले न्यायाधीश विवेक का उपयोग विवेकपूर्वक और प्रत्येक मामले में न्याय के हित में कर सकते हैं. हालांकि, FIR दर्ज करने के लिए तर्क की कसौटी पर लागू होने के लिए समय की कोई संभावित अवधि तय नहीं की जा सकती है क्योंकि हमने पहले ही समझाया है. यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है. यदि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी कानून में घातक नहीं है यदि अभियोजन पक्ष ने रिपोर्ट दर्ज करने वाले व्यक्तियों द्वारा सामना की गई तथ्यात्मक कठिनाइयों की पुष्टि की है.

निम्नलिखित रिपोर्ट या कथन हैं जो FIR होने की amount नहीं है: -

  • कई दिनों के घटनाक्रम के बाद दर्ज की गई रिपोर्ट.

  • रिपोर्ट तुरंत दर्ज नहीं की गई लेकिन गवाहों से पूछताछ के बाद.

  • जांच शुरू होने के बाद दर्ज की गई रिपोर्ट या बयान (दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 162 और 163).

  • संज्ञेय अपराध की घटना के बारे में जानकारी नहीं बल्कि तत्काल मदद के लिए अपील के रूप में केवल गुप्त संदेश.

  • मजिस्ट्रेट से शिकायत करें.

  • बीट हाउस को सूचना, दे .

  • फोन पर मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को सूचना.

  • एफएलआर दर्ज करने से पहले पुलिस स्टेशन में प्राप्त सूचना.

1) FIR क्या है?

उत्तर: FIR मतलब पुलिस को संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना देने वाली पहली सूचना रिपोर्ट, वास्तव में, यह एक संज्ञेय अपराध के आयोग से संबंधित जानकारी को एक पुलिस स्टेशन के प्रभारी, जो कि (जो हो) से संबंधित जानकारी देने के द्वारा कानून में डालती है. टोटे मुखबिर से लिखना और पढ़ना कम किया जाना चाहिए) और ऐसी सूचना देने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा. शिकायतकर्ता या मुखबिर को नि: शुल्क प्रथम सूचना रिपोर्ट (पुलिस द्वारा दर्ज की गई) की एक प्रति देना अनिवार्य है.

2) मैं एफ.आई.आर.

उत्तर: मुखबिर / शिकायतकर्ता को उस क्षेत्र में अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन में जाना चाहिए (जहाँ अपराध किया गया है) और संज्ञेय अपराध के कमीशन के बारे में प्रभारी अधिकारी / स्टेशन हाउस अधिकारी को रिपोर्ट करें. यदि मामले की जानकारी टेलीफोन पर दी जाती है, तो मुखबिर / शिकायतकर्ता को बाद में FIR के पंजीकरण के लिए पुलिस स्टेशन जाना चाहिए.

3) एक संज्ञेय मामला क्या है या संज्ञेय अपराध क्या है?

उत्तर: संज्ञेय मामला एक ऐसे मामले का मतलब है जिसमें एक पुलिस अधिकारी सीआरपीसी की पहली अनुसूची के अनुसार हो सकता है. (१ ९ being३), या किसी अन्य कानून के तहत, बिना वारंट के गिरफ्तारी.

4) संज्ञान लेना ’शब्द का क्या अर्थ है?

उत्तर: संज्ञान लेना ’शब्द को दंड प्रक्रिया संहिता में परिभाषित नहीं किया गया है. जब कोई भी मजिस्ट्रेट धारा 190 (1) (ए) सीआरपीसी के तहत संज्ञान लेता है, तो उसे न केवल याचिका की सामग्री के लिए अपने दिमाग को लागू करना चाहिए, बल्कि उसने ऐसा करने के लिए एक विशेष तरीके से कार्यवाही के उद्देश्य से ऐसा किया होगा सीआरपीसी में निर्धारित प्रक्रिया, और आगे की जांच के लिए शिकायत भेजने के बाद. एक मजिस्ट्रेट Cr.P.C की धारा 156 (3) के तहत भी जांच का आदेश दे सकता है.

5) एक गैर संज्ञेय अपराध क्या है?

उत्तर: गैर संज्ञेय अपराध का अर्थ है जिसमें एक पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तारी का कोई अधिकार नहीं है.

6) मैं NC शिकायत कैसे दर्ज कर सकता हूं?

उत्तर: ऐसे अपराधों के बारे में FIR के तहत बताए गए तरीके से जानकारी दी जानी चाहिए. प्रभारी अधिकारी लिखित में शिकायत को कम करेगा (गैर संज्ञेय अपराध के कमीशन के बारे में) और शिकायतकर्ता को इसकी एक प्रति नि: शुल्क देगा. कोई भी पुलिस अधिकारी एक गैर-संज्ञेय मामले की जांच नहीं कर सकता है जब तक कि वह इस तरह के मामले की कोशिश करने के लिए मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति प्राप्त नहीं करता है.

7) 'शिकायत' से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: शिकायत का अर्थ है कि किसी भी आरोप को मौखिक रूप से या मजिस्ट्रेट को लिखित रूप में, उसकी आपराधिक प्रक्रिया (1973) की संहिता के तहत कार्रवाई करने के दृष्टिकोण के साथ, कि किसी व्यक्ति (चाहे ज्ञात हो या अज्ञात) ने अपराध किया है.

) सार्वजनिक स्थान से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: सार्वजनिक स्थान में (और साधन) शामिल हैं, पूर्वाभिमुख, हर सार्वजनिक भवन या स्मारक के उपदेश, और सभी जगह जनता के लिए पानी खींचने, धोने या स्नान करने या मनोरंजन के उद्देश्य से सुलभ हैं.

FIR क्यों जरूरी है?

एक FIR एक बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है, क्योंकि यह आपराधिक न्याय की प्रक्रिया को गति में सेट करता है, थाने में FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस मामले की जांच करती है.