GSLV Full Form in Hindi




GSLV Full Form in Hindi - GSLV की पूरी जानकारी?

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GSLV Full form in Hindi

GSLV की फुल फॉर्म “Geosynchronous Satellite Launch Vehicle” होती है, GSLV का हिंदी में मतलब “जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल” होता है. यह भारत द्वारा विकसित सबसे बड़ा लॉन्च वीइकल है. यह चौथी पीढ़ी का लॉन्च वीइकल है, इसमें तीन स्टेज और चार बूस्टर होते हैं. ऊपरी स्टेज में Cryogenic इंजन लगा होता है. ISRO ने मुख्य रूप से कम्यूनिकेशन सैटलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए इसे बनाया है. आइये अब इसके बारे में अन्य सामान्य जानकारी प्राप्त करते हैं।

GSLV का इस्तेमाल मुख्य रूप से 250 x 36000 किमी ऊपर स्थित जिऑसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में Satellites को भेजने के लिए किया जाता है. GTO में सैटलाइट को और ऊपर इसके असल मुकाम तक पहुंचाया जा सकता है. वहां ये Satellites आसमान में एक ही स्थान पर स्थायी रूप से निर्धारित नजर आते हैं. किसी ग्राउंट एंटिना से इस पर नजर रखने की जरूरत नहीं होती है. इसलिए यह Communication के इस्तेमाल के लिए ज्यादा उपयोगी होता है।

GSLV के दो वर्जनों को इसरो द्वारा तैयार किया जा रहा है. पहले वर्जन का नाम GSLV एमके-II है। इसमें GTO तक 2,500 किलोग्राम वजन तक के Satellites को और LEO में 5,000 किलोग्राम वजन तक के Satellites को भेजने की क्षमता है।

What is GSLV in Hindi

GSLV का मतलब Geosynchronous सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है. यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित और संचालित उपग्रह-प्रक्षेपण यान है. इसका उपयोग उपग्रहों और अंतरिक्ष वस्तुओं को Geosynchronous ट्रांसफर ऑर्बिट में लॉन्च करने के लिए किया जाता है. इसने अब तक (जुलाई 2017) ग्यारह उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है. पहला उपग्रह 2001 में लॉन्च किया गया था और सबसे हालिया उपग्रह 5 मई 2017 को लॉन्च किया गया था।

ISRO ने GSLV को मुख्य तौर पर कम्युनिकेशन सैटेललाइट्स लॉन्च करने के लिए डिज़ाइन किया है. इनमें वो सैटेलाइट शामिल हैं, जो Geosynchronous ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) यानि 250x36000 किमी पर स्थापित की जाती है. GTO के बाद Satellites को उसके फाइनल मुकाम तक पहुंचाया जाता है. इसमें मौजूद इंजन सैटेलाइट को Geosynchronous अर्थ ऑर्बिट यानि GEO जो 36 हजार किमी ऊंचाई पर पहुंचाती है. अपनी जियो-सिंक्रोनस नेचर के चलते, सैटेलाइट अपनी ऑर्बिट में एक फिक्स पोजिशन में घूमती है. ये धरती से एक नियत स्थान पर दिखाई देती है।

ISRO ने GSLV को 2 वर्जन में विभाजित किया है. पहला वर्जन GSLV Mk-II है. ये 2500 किलोग्राम वजनी सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट GTO तक पहुंचाने में मदद करता है. ये तीन स्टेज पर आधारित लॉन्च व्हीकल है जिसके पहले स्टेज में सॉलिग रॉकेट मोटर, दूसरे स्टेज में लिक्विड फ्यूल और तीसरी स्टेज में क्रायोजेनिक इंजन मौजूद है।

GSLV विवरण

GSLV 49 मीटर लंबा है. यह तीन चरण का लांचर है, जिसमें 414.75 टन का भार है. इसे स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के साथ प्रदान किया गया है. GSLV का वर्तमान विन्यास जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में लगभग 2500 किलोग्राम का Payload डाल सकता है. इसके अलावा, यह लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 5 टन तक का Payload डाल सकता है।

First Stage (GS1) − इस अवस्था में, S-138 ठोस रॉकेट मोटर जो चार तरल इंजन स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के साथ प्रदान किया जाता है, का उपयोग जोर उत्पन्न करने के लिए किया जाता है. यह अधिकतम 4700 किलो न्यूटन का जोर पैदा कर सकता है।

Second Stage (GS2) − इस चरण में विकास नामक एक तरल रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है. इस चरण में 800 किलो न्यूटन का अधिकतम जोर उत्पन्न होता है।

Third Stage (CUS) − इस चरण में, एक cryogenic engine का उपयोग किया जाता है. यह इंजन ईंधन के रूप में तरलीकृत हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग करता है. CE = 7.5 भारत का पहला cryogenic engine है।

GSLV का संक्षिप्त इतिहास

  • GSLV परियोजना की शुरुआत 1990 में भू-समकालिक उपग्रहों के प्रक्षेपण में एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने के लिए की गई थी।

  • 18 अप्रैल 2001 को GSLV Mk I (GSLV-D1) की पहली विकासात्मक उड़ान 18 अप्रैल 2001 को शुरू की गई थी. यह सही कक्षा में पहुंचने में सक्षम नहीं थी।

  • GSAT-2 को सफलतापूर्वक अपनी दूसरी विकासात्मक उड़ान में रखने के बाद यह चालू हो गया।

  • सितंबर 2004 में, इसने EDUSAT लॉन्च किया? शैक्षिक सेवाओं के लिए भारत का पहला उपग्रह।

  • दूसरी परिचालनात्मक उड़ान (GSLV FO2) उपग्रह (INSAT-4C) को कक्षा में रखने में सक्षम नहीं थी।

  • GSLV मार्क की पहली सफल उड़ान। II 5 जनवरी 2014 को स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक इंजन (CE-7.5) का उपयोग करके GSLV-F05 का प्रक्षेपण था।

  • 8 सितंबर 2016 को, जीएनएलवी-एफ 05 को श्रीहरिकोटा से इन्सैट -3 डीआर उपग्रह लॉन्च करने के लिए लॉन्च किया गया था।

  • 5 मई 2017 को, GSLV-F09 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से GSAT-9 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।

इसे धरती के Observation या रिमोट सेंसिंग सैटेलाइटों को धरती से 600 से 900 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसके जरिए 1750 किलोग्राम तक की Satellite स्थापित की जा सकती है. ये Satellite को समकालिक सूरज की सर्कुलर ध्रुवीय कक्षा (SSCPO) तक पहुंचाने में सक्षम है. SSCPO के अलावा पीएसएलवी का इस्ते माल 1400 किलोग्राम वजन वाली सैटेलाइटों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में पहुंचाने का काम है।

इसरो ने GSLV को मुख्य तौर पर Communication satellites लॉन्च करने के लिए डिजाइन किया है. इनमें वो Satellite शामिल हैं, जो जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट यानी 250x36000 किलोमीटर पर स्थापित की जाती है. यहां से Satellites को उसके फाइनल मुकाम तक पहुंचाया जाता है. इसमें मौजूद इंजन Satellite को जियोसिंक्रोनस अर्थ ऑर्बिट यानी GEO जो 36 हजार किलोमीटर ऊंचाई पर पहुंचाती है. अपनी जियो-सिंक्रोनस नेचर के चलते, Satellite अपनी ऑर्बिट में एक फिक्स पोजीशन में घूमती है। ये धरती से एक नियत स्थान पर दिखाई देती है।

हमारे देश में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरूआत वर्ष 1960 के दौरान हुई थी. उस समय अमेरिका में भी उपग्रहों का प्रयोग करने वाले परीक्षण शुरू हो चुके थे. अमेरिकी उपग्रह ‘सिनकॉम-3’ द्वारा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टोकियो ओलंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार उपग्रहों की सक्षमता को प्रदर्शित किया, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई ने इससे होने वाले लाभों को पहचान लिया. Dr. Sarabhai यह मानते थे कि अंतरिक्ष के Resources में इतना सामर्थ्य है कि वह मानव तथा समाज की वास्तविक समस्याओं को दूर कर सकते हैं. अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) के निदेशक के रूप में डॉ. साराभाई ने देश के सभी ओर से सक्षम तथा उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, विचारकों तथा समाजविज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए एक दल गठित किया।

Dr. Sarabhai तथा डॉ. रामनाथन के नेतृत्व में इंकोस्पार (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) की शुरुआत हुई. वर्ष 1967 में अहमदाबाद स्थित पहले परीक्षणात्मक उपग्रह संचार भू-स्टेशन (ईएसईएस) का प्रचालन किया गया, जिसने भारतीय तथा अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी कार्य किया।