SIT Full Form in Hindi




SIT Full Form in Hindi - SIT की पूरी जानकारी?

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SIT Full form in Hindi

SIT की फुल फॉर्म “Special Investigation Team” होती है, SIT को हिंदी में “विशेष जांच दल” कहते है. SIT भारत की एक विशेष जांच Agency है, जिसे किसी विशेष मामले की जांच के लिए नियुक्त किया गया है. यदि मौजूदा Agency किसी मामले में उचित जांच करने में सक्षम नहीं है, या मामला कुछ high profile वाले लोगों के खिलाफ है, तो आमतौर पर इसे नियुक्त किया जाता है. आइये अब इसके बारे में अन्य सामान्य जानकारी प्राप्त करते हैं।

SIT भारत की एक विशेष जांच Agency है जिसे किसी Specific case की जांच के लिए नियुक्त किया जाता है. SIT का गठन आमतौर पर तब किया जाता है. जब यह पाया जाता है कि मौजूदा Agency मामले किसी सही तरह से जांच नहीं कर रही है. दोस्तों अक्सर ऐसा देखा जाता है जब मामला कुछ High profile लोगों के खिलाफ होता है. पुलिस थोड़ा दबाव में काम करती है, और हाई-प्रोफाइल लोग मौजूदा Agency की जांच को प्रभावित करते हैं, पीड़ितको इन्साफ मिल सके इसीलिये इसका गठन किया गया है।

SIT एक विशेष जांच दल है जिसे किसी विशिष्ट मामले पर एक रिपोर्ट बनाने के लिए नियुक्त किया जाता है. यह उन मामलों में नियुक्त किया जाता है जहां यह हो सकता है कि मौजूदा जांच एजेंसियों को इस मामले में उचित जांच करने में सक्षम नहीं माना जाता है. जैसा कि कोई कानून नहीं है जो निर्दिष्ट करता है कि किसे SIT में नियुक्त किया जा सकता है. नियुक्तियां सरकार के विवेक पर हैं जिन्हें SIT सेटअप करने के लिए निर्देशित किया गया है।

इस प्रकार गठित किसी भी एसआईटी में न्यायालय की शक्ति या अंतिमता नहीं है. न्यायालय उनके द्वारा की गई किसी भी रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है. एसआईटी द्वारा की गई किसी भी रिपोर्ट में, रिपोर्ट को पहले उदाहरण के न्यायालय के सामने रखा जाएगा और अपील के सभी चरणों में जांच से गुजरना होगा, यदि रिपोर्ट प्रक्रिया में खारिज कर दी जाती है, तो यह अपील अदालत के लिए बनी रहती है कि वह तय करे कि मामले का हश्र क्या होना है. SIT को केवल कुछ हाई प्रोफाइल मामलों में नियुक्त किया गया है, जो सबसे प्रसिद्ध गुजरात दंगों का मामला है और हाल ही में मध्यग्राम सामूहिक बलात्कार का मामला है।

SIT को सौंपे गए मामलों के प्रकार

एसआईटी को सौंपे जाने वाले मामले के प्रकार को निर्दिष्ट करने के लिए संविधान में कोई कानून नहीं है. यह आमतौर पर हाई-प्रोफाइल मामले हैं जो इस Agency को सौंपे जाते हैं. गुजरात दंगा मामला और 1984 सिख विरोधी दंगा मामला कुछ ऐसे मामलों की एसआईटी ने जांच की है।

What is SIT in Hindi

सिख के खिलाफ वर्ष 1984 में एक बहुत बड़ा दंगा हुवा था. जिसके मामले की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने SIT का गठन किया है. ऐसा माना जाता है SIT की जांच के बाद इस मामले में ना केवल तस्वीर और साफ हो सकेगी, बल्कि पीड़ितों को न्याय मिलने की भी आस बंधेगी. आपकी जानकारी के लिए बात दे की SIT का गठन आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट तब करता जब मामला बहुत बड़ा होता है. जब सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि सरकारी एजेंसियों की Report में पूरा न्याय नहीं हुआ है, या फिर Government agencies द्वारा की गई जांच में उसे कमी नजर आती है. SIT का गठन कई मामलों में राज्य और केंद्र सरकारें भी करती रही हैं. ऐसा माना जाता है कि SIT की Report ना केवल निष्पक्ष होगी, बल्कि उसमें वो पहलू cover किए जा सकेंगे, जो जांच Agencies की जांच में सामने नहीं आ पातीं. ये जानना जरूरी है कि SIT क्या होती है और ये कितनी महत्वपूर्ण होती है।

SIT का मतलब या अर्थ होता है Special Investigation Team, और इसका गठन आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किया जाता है. SIT का गठन जो न्यायाधीश करते है. वो सभी अपनी फील्ड में कुछ विशेषज्ञ रखते हैं. इसे ऐसी विशेष जांच एजेंसी माना जाता है. जो किसी भी दबाव में आए बगैर हाई प्रोफाइल मामलों या लोगों के खिलाफ जांच का काम कर सकती है. हमारे देश में ऐसे बहुत से केस ही जहां पर SIT का गठन करने के बाद ही लोगों को इन्साफ मिल सका, पिछले कुछ सालों में Supreme court ने कई मामलों में SIT का गठन किया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि SIT का गठन केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकती है. राज्य या केंद्र सरकार भी ऐसा कर सकती हैं. कई मामलों में राज्य सरकारों ने भी SIT का गठन किया है।

SIT कैसे काम करता है?

Supreme court या राज्य सरकार द्वारा SIT (विशेष जांच दल) नियुक्त किया जा सकता है. टीम का नेतृत्व एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है, यह मामले की जांच करता है और एक Report अदालत में पेश करता है. Report अपील के सभी चरणों में छानबीन करती है. अदालत को Report को Accept या Reject करने का अधिकार है. अगर अदालत ने Report को खारिज कर दिया है तो अपीलीय अदालत का मामला का भाग्य तय करने का एकमात्र विकल्प बचा है.

विशेष जांच दल को सर्वोच्च न्यायालय या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जा सकता है. टीम का नेतृत्व एक व्यक्ति करता है. यह मामले की जांच करता है और अदालत में पेश करने के लिए एक रिपोर्ट बनाता है. Report अपील के सभी चरणों में जांच से गुजरती है. अदालत को रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार है. यदि अदालत रिपोर्ट को खारिज कर देती है तो मामले की किस्मत का फैसला करने के लिए अपीलीय अदालत ही एकमात्र विकल्प बचता है।